वैज्ञानिकों ने खोजा HIV इंफेक्शन का पता लगाने का नया तरीका
पूरी दुनिया में एचआईवी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती ही जा रही है। खासतौर पर भारत में इस बीमारी को लेकर लोगों की कम जागरूकता के कारण HIV के रोगियों की संख्या लगातार बढती जा रही है है और यही कारण है कि हमारे देश में हर वर्ष इस लाइलाज बीमारी से मरने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। पूरी दुनिया में शोधकर्ता इस बीमारी का इलाज खोजने में लगी हुई है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने एचआईवी संक्रमण का पता लगाने के लिए एक नया तरीका विकसित किया है। इससे इस बीमारी के इलाज और बचाव के लिए उपचार के नए तरीके विकसित करने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस तरीके के जरिए प्रत्येक विरियोन्स (संक्रामक कण) का संक्रमण से संबंध समझने के लिए उसके व्यवहार को चेक किया जाता है।
अमेरिका के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता थामस होप ने कहा कि 'हमारा यह तरीका और यह कहना कि विरियोन के कारण ही वो सेल्स संक्रमित होते हैं' इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। होप ने कहा “इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि किसी सेल्स को संक्रमित करने के लिए विषाणु को वास्तव में क्या करने की जरूरत होती है। इससे हमें कई नयी चीजें पता चलती हैं जैसे कि कोशिका में किस समय संक्रमण हुआ। विषाणु के बारे में हम जितना पता चलेगा उतना ही इसे रोकने के लिए भविष्य में हमारे पास बेहतर संभावनाएं होंगी। रिसर्च के जरिए एचआईवी की प्रक्रिया को गहरे से समझने के साथ ही एचआईवी के बचाव और उपचार के लिए नए तरीकों को विकसित करने में मदद मिलेगी। इन्फेक्शन के वक्त एचआईवी वायरस प्रतिरोधी कोशिका से मिल जाता है और अपने कैपसिड को कोशिका के कोशिकाद्रव्य में छोड़ देता है। वहां से कैपसिड “अनकोटिंग” प्रक्रिया के जरिए अलग हो जाता है। यह प्रक्रिया आरएनए जीनोम से विषाणुजनित डीएनए के संकलन के लिए जरूरी होता है और फिर यह कोशिका की सभी क्रियाओं पर अपना अधिकार जमा लेता है।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों द्वारा एक नए तरीके का लाइव-सेल फ्लोरोसेंट ईमेजिंग सिस्टम प्रयोग किया गया जिससे वह पहली बार संक्रमण से जुड़े प्रत्येक कण की पहचान कर पाए। उन्होंने कहा कि अगर हमारी रिसर्च सही चलती रही तो अगले कुछ सालों में ही हमें इस दिशा में कुछ बेहतरीन परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
अभी इन लक्षणों से जान सकते है क्या आप है HIV पॉजीटिव
एचआईवी एड्स के बारे में आप जरूर जानते होंगे । और यह भी जानते होंगे, कि असुरक्षित शारीरिक संबंध इस बीमारी को जन्म दे सकते हैं। इतना ही नहीं, पीड़ित व्यक्ति के शारीरिक द्रव के संपर्क में आने से भी आप इस गंभीर बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। आपको अंदाजा भी नहीं होगा कि आपके शरीर में दिखने वाले यह लक्षण एड्स के हो सकते हैं -
1 बार बार बुखार का आना - क्या आपको बार बार बुखार आ जाता है तो आपको सावधान हो जाने की आवश्यकता है क्योंकि लगातार आने वाला बुखार एड्स का एक लक्षणों में एक है इस बीमारी में इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाता है कई लोगो में तो लगभग समाप्त हो जाती है जिसके कारण आपका प्रतिरोधी तंत्र बार-बार बुखार को रोक नहीं पाता।
2 लगातार थकान का बना रहना - लगातार थकान का बना रहना भी एड्स का एक लक्षण हो सकता है। शरीर का इम्यून पावर कम होने के कारण उसे आराम की अधिक आवश्यकता होती है। ऐसे में लगातार थकान का बना रहना स्वभाविक बात है।
3 सिर में दर्द बना रहना -और गला खराब रहना भी इस गंभीर बीमारी का एक लक्षण हो सकता है। इस स्थिति में कई बार सिर में तेज दर्द भी हो सकता है, जो दिनभर और रातभर जारी रह सकता है।
5 वजन का लगातार घटना - एड्स के अन्य संभावित लक्षणों के साथ-साथ अगर आपका वजन लगातार घटता जा रहा है, तो यह आपके लिए चिंताजनक बात हो सकती है। हालांकि वजन कम होने के और भी कारण हो सकते हैं, लेकिन इसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।
6 सोते वक्त पसीना आना - अगर आप चैन की नींद नहीं ले पा रहे हैं और किसी भी तापमान पर आपको अत्यधिक पसीना आता है तो इसे अनदेखा न करें। इस स्थिति में ज्यादा पसीना आने के साथ ही आप करवटें बदलते हुए रात काटते हैं और घुटन महसूस करते हैं तो यह HIV के कारण हो सकता है।
कैसे की जाती है एड्स की जाँच?
एच आई वी मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है, एच आई वी टाइप 1 (HIV-1) और एच आई वी टाइप 2 (HIV-2), इनमें से टाइप 1 का सम्बन्ध, पश्चिमी अफ्रीका में पाये जाने वाले, चिम्पांजी और गोरिल्ला से है। एच आई वी टाइप 1 और 2 की जाँच करने के लिए, रक्त परिक्षण किया जाता है। शरीर में एच आई वी का संक्रमण होने के बाद, शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति, एच आई वी के खिलाफ एंटीबॉडी का निर्माण करने लगती है। जब रक्त परिक्षण करने पर, यह एंटीबॉडी शरीर में पाये जाते हैं, तो उस व्यक्ति को एच आई वी पॉजिटिव कहा जाता है।एच आई वी का संक्रमण होने के बाद, शरीर में एच आई वी एंटी बॉडी का निर्माण होने में एक से दो हफ़्तों, या 6 महीनों तक का समय लगता है और इस समय को विंडो पीरियड (Window Period) कहा जाता है। कभी-कभी एच आई वी विषाणु के शरीर में मौजूद होने के बावजूद, इस समय पीड़ित के खून की जांच सामान्य आ सकती है और पीड़ित दूसरों को भी एड्स से ग्रसित कर सकता है।
शरीर में एच.आई.वी वायरस की जाँच करने के लिए निम्नलिखित परिक्षण किये जाते हैं-
एच.आई.वी एंटीजन टेस्ट- शरीर में, एच आई वी का संक्रमण होने के बाद, एंटीबॉडी बनने में काफी वक़्त लगता है। लेकिन इसके एंटीजन (नया एच आई वी वायरस) जल्दी तैयार हो जाते हैं। इसलिए एच आई वी एंटीजन टेस्ट करने पर, एच आई वी के संक्रमण होने की पुष्टि कुछ दिनों में ही हो जाती है और तुरंत उपचार एवं अन्य व्यक्तियो में इसके फैलाव होने से भी रोका जा सकता है।
CD4 काउंट- CD4 सेल्स, रोग प्रतिरोधक शक्ति का एक महत्वपूर्ण अंग है। सामान्य स्वस्थ्य व्यक्ति में CD4 सेल्स कि संख्या 500-1500 सेल्स /mm3 होती है। यदि किसी व्यक्ति में CD4 सेल्स कि संख्या 200 सेल्स /mm3 से कम आती है, तो उस व्यक्ति को एड्स से पीड़ित कहा जाता है।
एंजाइम-लिंक्डइम्मुनो सोर्बेंट ऎसे टेस्ट (ELISA)- एड्स की जाँच करने के लिए ELISA टेस्ट भी किया जाता है। यह जांच पॉजिटिव आने पर, इसकी पुष्टि करने के लिए वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट किया जाती है। एच आई वी संक्रमण के विंडो पीरियड (संक्रमण के शरुआती 3 हफ्ते से 6 महीने तक का समय) में यह जांच फॉल्स नेगेटिव भी आ सकती है। फॉल्स नेगेटिव का मतलब, परीक्षण करने पर परिणाम नकारात्मक हो, जबकि वास्तव में वह वायरस शरीर में उपस्थित होता है।
लार की जाँच- एक कॉटन पैड पर मुंह के अंदर से थूक (saliva) का नमूना लेकर, प्रयोगशाला में जांच की जाती है। यह जांच पॉजिटिव आने पर, एच आई व की पुष्टि करने के लिए, अन्य ब्लड टेस्ट किये जाते हैं।
वायरल लोड टेस्ट- इस जांच में खून में एच आई वी वायरस की मात्रा की जांच की जाती है। यह जांच उपचार के दौरान, पीड़ित में हो रहे सुधार के आकलन में काम आती है।
आशा है एड्स के संबध में यह लेख आपको पसंद आया होगा यदि पसंद आया हो तो कमेंट
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जय श्री राम जय हनुमान
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