गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है और हमारे जीवन में इसका क्या महत्व है
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Ganesh Mahotsav Mumbai |
दोस्तों हमारा देश भारत धार्मिक परम्पराओं का देश है 36 करोड़ देवी देवताओं का देश है सम्पूर्ण भारत में गणेश चतुर्थी को अनेकों रूपों में मनाया जाता है सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार इसी दिन माता पार्वती और देवो के देव महादेव शिव के लाडले पुत्र भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव के रूप में इस त्योहार को पुरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
महाराष्ट्र और उसके आसपास के इलाकों में तो गणेश चतुर्थी के बाद 10 दिनों तक लगातार गणेशोत्सव मनाया जाता है। भक्त इस दौरान अपने-अपने घरों में भागवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर भक्ति भाव से दस दिनों तक विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा करते हैं।
क्यों मनाया जाता है गणपति महोत्सव ?
गणेश चतुर्थी का त्यौहार मानाने की परंपरा सेकड़ो वर्षो से चली आ रही है। पहली बार गणेश चतुर्थी का पर्व कब मनाया गया इसके बारे में तो कही भी पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। माना जाता है कि पुणे में मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी के ज़माने (१६३० – १६८० ) से गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जा रहा है। भगवान श्री गणेश शिवाजी के कुल देवता थे अतः पेशवाओं ने इस उत्सव के प्रति अपने राज्य में नागरिकों को प्रोत्साहित किया। पेशवा साम्राज्य के पतन के बाद गणेश उत्सव एक राज्य उत्सव नहीं होकर एक पारिवारिक उत्सव बन कर रह गया। स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणेश चतुर्थी के उत्सव को महाराष्ट्र में फिर से लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया और वह सफल भी रहे और इस प्रकार यह उत्सव महारष्ट्र राज्य स्तर पर मनाया जाने लगा।
यह भी माना जाता है कि गोवा में गणेश चतुर्थी का उत्सव कदंब युग से पहले से चला आ रहा है। गोवा में न्यायिक जांच आयोग ने हिन्दू त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया था, और जिस हिंदु को ईसाई धर्म में परिवर्तित नहीं किया था उसे गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस प्रतिबन्ध बावजूद गोवा के हिन्दू इस त्यौहार को मानते रहे। कई परिवार कागज की तस्वीर पर या छोटे चांदी की मूर्तियों पर पत्री के रूप में गणेश पूजा करते रहे। न्यायिक जांच के हिस्से के रूप में मिट्टी के गणेश मूर्तियों और त्योहारों पर जीसस द्वारा प्रतिबंध की वजह से कुछ घरों में गणेश प्रतिमाये छिपे हुए हैं, यह गोवा में गणेश चतुर्थी की अनूठी परंपरा थी। महाराष्ट्र में मनाये जा रहे गणेश चतुर्थी के त्योहार के विपरीत, गोवा में यह एक परिवार के एक द्वारा वाला उत्सव है जिसमे एक 1000 या अधिक की संख्या में लोग अपने पैतृक घरों में इस समारोहों को मनाते हैं।
श्री गणेश जी के जन्मोत्सव को मानाने के लिए तैयारी लगभग एक महीनों पहले ही शुरू हो जाती है। इसके लिए सामूहिक प्रयासों से धन की वयवस्था की जाती है और पंडाल सजाया जाता है मूर्ति बनाने प्रक्रिया महाराष्ट्र में आमतौर पर “पाद्य पूजा” या भगवान गणेश के पैरों की पूजा के साथ शुरू होता है। मूर्तियों को आमतौर पर 15-20 दिन पहले “पंडालों” या अस्थायी निर्माणाधीन पंडालों में लाया जाता है। घर में त्योहार की शुरुआत एक मिट्टी मूर्ति (मूर्ति) की स्थापना के साथ शुरू होता है। परिवार मूर्ति स्थापित करने से पहले फूल और अन्य रंगीन आइटम के साथ एक छोटी सी, स्वच्छ कोने को सजाते हैं । जब मूर्ति स्थापित हो जाती है, तब मूर्ति और पंडालों को फूलों और अन्य सामग्री के साथ सजाया जाता है।
इस त्यौहार के लिए मूर्ति बनाने वाले कारीगर बिक्री के लिए गणेश की मिट्टी की मूर्तियां तैयार करतें हैं । मूर्ति को बड़े समुदाय समारोह के लिए 70 से अधिक फीट (21 मीटर) की और घरों के लिए 3/4 इंच (1.9 सेमी) के आकार में सीमा की होतीं हैं । गणेश चतुर्थी के लिए तारीख का निर्णय आमतौर पर चतुर्थी तिथि की उपस्थिति को देख कर किया जाता है। चतुर्थी तिथि पिछले दिन रात में शुरू होता है और अगले दिन सुबह तक खत्म हो जाता है तो अगले दिन विनायक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। अभिषेक समारोह में, एक पुजारी मूर्ति में भगवान गणेश को आमंत्रित करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा करता है। इसके बाद पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, धुप, दीप नैवेद्य आदि से गणेश की षोडशोपचार पूजा की जाती है। श्रद्धालु भक्त नारियल, गुड़, मोदक, दुर्वा, घास और लाल गुड़हल के फूल मूर्ति को स्नेह के साथ समर्पित करते हैं। समारोह के दौरान, ऋग्वेद, गणपति अथर्वशीर्ष , उपनिषद, और गणेश स्तोत्र (प्रार्थना) नारद पुराण से भजन आदि तंवर स्तुति की जाती है। मित्रों और पुरे परिवार के साथ सुबह शाम की संध्या आरती की जाती है। यह उत्सव जागरण भजन से साथ पुरे दस दिनों तक चलता है उसके बाद गणपति की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है
गणेश चतुर्थी मनाये जाने के पीछे पौराणिक कथा
शिवपुराण में एक कथा है कि एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थी और उसी समय उन्होंने अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न किया और उसे घर का पहरेदार बनाकर उस बालक को कहा कि ध्यान रहे मेरे आने तक घर में कोई भी प्रवेश ना करे।
इधर कुछ देर बाद ही भगवन शिव का आना हुआ और जब शिवजी ने जब अपने ही घर में प्रवेश करना चाहा तो इस बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिव के गणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया लेकिन इस संग्राम में सभी शिवगण पराजित हो गए । अंत में स्वयं भगवान शिव ने उस बालक से युद्ध किया और शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। जब माता पार्वती को यह पता चला की बह्वन शिव ने अपने की बालक का सर काट दिया तो वह क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली।
माता पार्वती का भयंकर रूप देख तीनो लोक हिलने लगे भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। इधर शिवजी के निर्देश पर विष्णु जी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले हाथी का सिर काटकर ले आए। भागवान शिव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनः जीवनदान दिया।
और तब जाकर माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ माता पार्वती ने खुश होकर उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को देवताओं के अध्यक्ष के रूप में घोषित करके सबसे पहले पूजे जाने का वरदान दिया।
भगवान शंकर ने बालक से कहा कि हे गिरिजानन्दन! विघ्न-वधाओं को नाश करने में तुम्हारा नाम सर्वोपरि होगा। तुम सबके पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जाओ।
और इस प्रकार गणेश जी सभी यज्ञ पूजा पाठ में सबसे पहले पूजे जाने लगे ।
हे गणेश्वर! तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के बाद व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
क्या है हमारे जीवन में महत्त्व
भारतीय संस्कृति के सुसंस्कारों में किसी कार्य की सफलता हेतु पहले उसके मंगला चरण या फिर पूज्य देवों के वंदना की परम्परा रही है। चाहे वह किसी कार्य की सफलता के लिए हो या फिर चाहे किसी कामनापूर्ति स्त्री, पुत्र, पौत्र, धन, समृद्धि के लिए या फिर अचानक ही किसी संकट मे पड़े हुए दुखों के निवारण हेतु हो। किसी कार्य को सुचारू रूप से निर्विघ्नपूर्वक सम्पन्न करने हेतु सर्वप्रथम श्रीगणेश जी की वंदना व अर्चना का विधान है। इसीलिए सनातन धर्म में सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा से ही किसी कार्य की शुरूआत होती है। और माना जाता है जिस कार्य में गणेश जी को बेठा दिया जाता है वह कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है आपने देखा और आपके घरो में जब विवाह जैसा शुभ कार्य होता है तो सबसे पहले विनायक को बैठाया जाता है गणेश जी का पूजन किया जाता है यदि कोई भोज किया जाता है तो उसमे सबसे पहले विनायक जी को बैठाया जाता है उन्हें भोग लगाया जाता है और वह कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जता है यही महत्व है हमारे जीवन में
जय श्री गणेश
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Narendra Agarwal
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