शालिग्राम और तुलसी का विवाह करवाए और बैकुंठ धाम में स्थान आरक्षित करवाए
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की ग्यारस जिसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है इस दिन भगवान् विष्णु को निद्रा से जगाया जाता हैं और परम सती वृंदा के रूप मां तुलसी से उनका विवाह भी कराया जाता है जी हां कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन श्री शालिग्राम और तुलसी का विवाह होता है। लेकिन यह शालिग्राम आखिर है कौन क्या है यदि आप नहीं जानते है तो आइए जानते हैं :
हिन्दू पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार वृंदा नामक सती स्त्री के सतीत्व को विष्णु ने छल से भंग किया था और उसके राक्षस पति जलंधर का वध किया था वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी उसने अपनी पतिव्रता शक्ति से विष्णु को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के हो जाओ वृंदा के श्राप के विष्णु पत्थर के हो गए और बाद में यही पत्थर शालिग्राम कहलाया, जिसे सालिग्राम भी कहते हैं। वृंदा के श्राप दिए जाने पर भगवान विष्णु ने कहा, 'हे वृंदा तुम एक पवित्र महिला हो अतः तुम्हरा श्राप खाली नहीं जाएगा और मुझ पर भी तुम्हारे श्राप का असर होगा यह तुम्हारे सतीत्व का फल है और तुम तुलसी का पौधा और गंडकी नदी बनकर सदैव मेरे साथ ही रहोगी। मैं यहीं गंडकी नदी के किनारे तुम्हारे साथ रहूंगा तुम्हारे बगैर मेरी पूजा कभी पूरी नहीं होगी जो मनुष्य एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, और बारस के दिन शालिग्राम से विवाह करेगा उसे परम धाम की प्राप्ति होगी ।
और भगवन विष्णु पत्थर में बदल गए और इस प्रकार भगवान शालिग्राम श्री नारायण का साक्षात् और स्वयंभू स्वरुप माने जाते हैं।
शालिग्राम पत्थर नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने, अंडाकार पत्थर को कहा जाता है । स्वयंभू होने के कारण इनकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर अथवा मन्दिर में सीधे ही पूज सकते हैं।
शालिग्राम भिन्न भिन्न रूपों में प्राप्त होते हैं कुछ मात्र अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छिद्र होता है तथा पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं। कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान होती हैं। दुर्लभ रूप से कभी कभी पीताभ युक्त शालिग्राम भी प्राप्त होते हैं।
जानकारों व् संकलन कर्ताओं ने इनके विभिन्न रूपों का अध्ययन कर इनकी संख्या 80 से लेकर 124 तक बताई है।
शालिग्राम को एक चमत्कारी और मूल्यवान पत्थर माना जाता है साक्षात् विष्णु का रूप माना जाता है अतः इसे बहुत सहेज कर रखना चाहिए इसके अलावा मान्यता है कि शालिग्राम के भीतर अल्प मात्रा में स्वर्ण भी होता है। जिसे प्राप्त करने के लिए चोर इन्हें चुरा लेते हैं।
भगवान् शालिग्राम का पूजन तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होता और तुलसी अर्पित करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।
श्री शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभाव, कलह, पाप ,दुःख और रोग दूर हो जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि तुलसी और शालिग्राम का विवाह करवाने से वही पुण्य फल प्राप्त होता है जो कन्यादान करने से मिलता है।
नित्य पूजा में श्री शालिग्राम जी को स्नान कराकर चन्दन लगाकर तुलसी दल अर्पित करना और चरणामृत ग्रहण करना चाहिए यह उपाय मन, धन व तन की सारी कमजोरियों व दोषों को दूर करने वाला माना गया है।
पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में भगवान शालिग्राम हो, वह घर समस्त तीर्थों से भी श्रेष्ठ है। इनके दर्शन व पूजन से समस्त भोगों का सुख मिलता है।
भगवान शिव ने भी स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की है और इसका महत्व समझाया है ।
ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय में उल्लेख है कि जहां भगवान शालिग्राम की पूजा होती है वहां भगवान विष्णु के साथ भगवती लक्ष्मी भी निवास करती है।
पुराणों में यह भी लिखा है कि शालिग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता है, वह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल पा लेता है।
जो निरंतर शालिग्राम शिला का जल से अभिषेक करता है, वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है।
मृत्युकाल में इनके चरणामृत का जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक चला जाता है।
जिस घर में शालिग्राम का नित्य पूजन होता है उसमें वास्तु दोष और बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती है।
पुराणों के अनुसार श्री शालिग्राम जी का तुलसीदल युक्त चरणामृत पीने से भयंकर से भयंकर विष का भी तुरंत नाश हो जाता है।
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