खाटू श्याम बाबा की कहानी कलयुग मे हारे के सहारे श्याम बाबा
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Khatu Shyam Baba ki jai ho |
खाटू श्याम जी मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध चमत्कारी स्थान में से एक है जहाँ खाटू श्याम बाबा के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता है खाटू श्याम बाबा जो अपने चमत्कारों व वरदानों के लिए प्रसिद्ध हैं।
राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले में स्थित है खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर।
इस मंदिर में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी यानी की बारस के दिन श्याम बाबा का विशाल मेला भी भरता है जिसमें देश और विदेशों से श्याम बाबा के लाखो भक्त मेले शामिल होते हैं।
यह मेला राजस्थान में भरने वाले सबसे बड़े मेलों में से एक माना जाता है तो दूर दूर से इस मंदिर में माथा टेकने लोग यूँ ही नहीं आते है कलयुग में अवतारी खाटू श्याम बाबा का साक्षात चमत्कार भक्तो को बार बार बाबा के दरबार में जाने के लिए उत्साहित करता है यह मंदिर बड़ा ही चमत्कारी मंदिर है
यह इस मंदिर में श्यामबाबा का केवल शीश और धनुष पर तीन वाण की छवि वाली मूर्ति यहां स्थापित है
कहा जाता है की इस मंदिर की स्थापना महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद स्वयं भगवान कृष्ण ने अपने हाथों की थी खैर इस मंदिर के सम्बन्ध में कई मान्यताये है
तो खाटू श्याम बाबा की कहानी महाभारत काल से ही शुरू होती है। और आज इस विडियो में हम आपको खाटू श्याम बाबा की प्राचीन सच्ची कथा या कहानी शेयर करने जा रहे है
तो यह महाभारत काल की बात है खाटू श्याम बाबा को पहले बर्बरीक के नाम से जाना जाता था
बर्बरीक पान्डव भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या अहिलवती के पुत्र थे
बचपन से ही बर्बरीक बेहद वीर और एक महान यौद्धा थे युद्ध की अद्भुत कला बर्बरीक ने अपनी माँ से सीखी उसके बाद बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और भोलेनाथ शिव को प्रसन्न करके उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किये जिनसे तीनो लोको भी जीता सा सकता था
इन तीनो बाणों को चलाने के लिए एक विशेष धनुष की आवश्यकता थी जिसके लिए बर्बरीक ने अग्नि देव की तपस्या की और अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें वह धनुष प्रदान किया जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।
तो महाभारत का भयानक युद्ध कौरवों और पाण्डवों के बीच चल रहा था और सम्पूर्ण संसार में इस युद्ध की चर्चा चल रही थी तो इस युद्ध की खबर किसी तरह से बर्बरीक के पास भी पहुच ही गयी
जब यह समाचार बर्बरीक तक पंहुचा तो बर्बरीक की भी इस युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हो गयी
वो अपनी माँ के पास गए और बोले मुझे भी महाभारत के युद्ध में जाना है
और युद्ध में जाने के लिए उन्होंहे अपनी माता से आज्ञा और आशीर्वाद माँगा
बर्बरीक की माँ जानती थी की यह युद्ध कौरवो और पांड्वो के बीच हो रहा है और कौरवो के पास एक से एक बड़े योद्धा है तो उन्होंने सोचा की पांडव तो इतनी विशाल सेना के आगे कमजोर पड़ गए तो फिर क्या होगा तो इसलिए जब बर्बरीक अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे, तो माँ ने कहा तुम युद्ध में क्यों जाना चाहते हो बर्बरीक ने कहा मैं युद्ध लड़ना चाहता हु तब बर्बरीक की माँ ने कहा ठीक है तुम जाओ परन्तु मुझे एक वचन दो बर्बरीक ने कहा कैसा वचन माँ तब बर्बरीक की माता ने कहा सुनो पुत्र तुम मुझे यह वचन दो जो भी पक्ष तुम्हे हरता हुआ मिलेगा तुम उसकी और से युद्ध लड़ोगे बर्बरीक ने कहा माँ में तुम्हे वचन देता हु और फिर वे अपने प्रिय नीले घोड़े पर सवार होकर शिवजी से प्राप्त तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की और निकल पड़े
अब भगवान् कृष्ण के लिए यह बड़ी समस्या हो गयी क्योकि उस समय कौरव हार की और जा रहे थे और बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दे दिया की वो हारे के सहारे बनेगे और यदि बर्बरीक कौरवो के साथ हो जाते तो फिर कौरवो को हरा पाना असम्भव था
ऐसा सोच कर भगवन कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण किया और बर्बरीक को रास्ते में ही रोक लिया
वो बर्बरीक से बोले बालक तुम कहा जा रहे हो बर्बरीक ने कहा मैं महाभारत के युद्ध में युद्ध लड़ने जा रहा हु भगवन क्रिशन ने कहा यह कोई बच्चो के खेलने की जगह नहीं है और बर्बरीक की हंसी उड़ने लगे
बर्बरीक ने कहा देखो ये मेरे तीन बाण देखो और मात्र एक ही बाण शत्रु सेना को ध्वस्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद भी बाण वापिस तरकस में ही आयेगा और इस तरह मुझे दुसरे बाण की भी आवश्यकता नहीं होगी इस युद्ध को जितने के लिए क्योकि एक बार यदि एक बाण चला तो सभी को मार कर ही वापस आएगा
और यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो फिर तीनों लोकों में हाहाकार मच जायेगा।
अब भगवन कृष्ण ने कहा की यह इतने ही चमत्कारी है तो वह भी इनका चमत्कार देखना चाहते है
और फिर भगवन कृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती दी कि यदि वास्तव ने यह बाण चमत्कारी है तो इस पीपल के पेड के सभी पत्तो को भेद कर दिखाओ जो पेड़ पर लगे है और जो निचे गिरे है
बर्बरीक ने कहा इसमें कौनसी बड़ी बात है बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार कर ली और फिर उन्होंने अपने तुणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ की और चला दिया
बाण ने पलक झपकने से पहले ही पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया और फिर वह बाद भगवान् कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा रखा था और बाण उसे भेदना चाहता था
तब बर्बरीक ने कहा कि हे ब्राह्मण देवता आप तुरंत अपने पैर को हटा लीजिये वर्ना यह आपके पैर को भी चोट पहुंचा सकता है
भगवन कृष्ण समझ चुके थे की यह भगवन शिव के वरदान का परिणाम है
तब भगवन कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस और से सम्मिलित होगा
बर्बरीक ने कहा वह युद्ध में जो हार रहा होगा उसका साथ देंगे और यह अटल सत्य है क्योकि मैं अपनी माता को वचन देकर आया हु
तब ब्राहमण रूप में भगवन किर्शन ने बर्बरीक से कहा की वो उससे कुछ दान में चाहते है वीर बर्बरीक ने कहा मांगो और उन्हें वचन दे दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य ही पूरी करेगा
तब ब्राहमण बने कृष्ण ने उनसे उनका शीश का दान में मांग लिया
बालक बर्बरीक क्षण भर के लिये तो सोच में पड़ गए मगर अगले ही क्षण उसने अपने वचन की दृढ़ता जतायी।
तब बर्बरीक समझ गए की यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है तो उनसे अपने वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना की और तब भगवान किर्ष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप के दर्शन कराये
बर्बरीक ने भगवन से प्रार्थना की कि वह अंत तक इस युद्ध देखना चाहता है
श्री कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली।
और तुरंत ही बर्बरीक ने अपनी तलवार के एक ही वार से अपना शीश काट कर भगवन को सौप दिया वः दिन फाल्गुन माह की द्वादशी का दिन था
भगवान के वचनों के अनुसार उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया गया जहां से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध को देखने लगे
महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ
युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी में कहा सुनी होने लगी कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, श्रेष्ट योद्धा कौन रहा
तब भगवन कृष्ण ने सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। सभी इस बात से सहमत हो गये बोले चलो बर्बरीक के शीश के पास सभी बर्बरीक के शीश के पास पहुचे और उससे अपनी जिज्ञासा रखी बर्बरीक के सर ने उत्तर दिया कि इस सम्पूर्ण युद्ध में श्री कृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं।
उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र ही घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था, महाकाली दुर्गा कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं तब श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक को उसके महान बलिदान से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि हे बर्बरीक तुमार्हे जैसा बलिदान कोई नहीं कर सकता है कलियुग में तुम मेरे नाम से यानी की श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है तुमने आपना शीश मुझे दान दिया है अतः तुम शीश के दानी के नाम भी पूजे जाओगे तुमने हारने वाले का साथ देने का वचन अपनी माँ को दिया था इसलिए तुम सदेव हारे से सहारे बनोगे जो भी भक्त कलयुग में तुम्हरी पूजा करेगा उसकी सभी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी
अब कलयुग में यह मंदिर कैसे बना इसकी भी एक कहानी है जिसके लिए हमने एक विडियो बनाया हुआ है तो यदि आप उस कहानी को भी जनाना चाहते है तो आप नीचे उस विडियो को देख सकते
तो प्रेम से बोलिए हारे के सहारे की जय शीश के दानी की जय
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